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Tuesday, May 18, 2010

इंच भर ज़मीं से.....

इंच भर ज़मीं से उठ जाने की ज़िद अच्छी नहीं।
नाहक़ आसमान तक जाने की ज़िद अच्छी नहीं।

माना दर--दीवार ने बढ़ कर कभी रोका नहीं,
घर तो घर है देर से आने की ज़िद अच्छी नहीं।

मेरी छत किसी का फ़र्श है मेरा फ़र्श किसी की छत,
नाम मेरा मक़ान पे लगाने की ज़िद अच्छी नहीं।

मैं भी सेकूं तुम भी सेको अपनी-अपनी आग पर,
बाँट कर रोटी यहाँ खाने की ज़िद अच्छी नहीं।

तेरा ग़म रदीफ़ है और मेरा ग़म है काफ़िया,
इक दूसरे को शेर सुनाने की ज़िद अच्छी नहीं।

दूरियां मिट जाएँगी आँखों में तुम आओ तो सही,
सीढ़ियों से हो के पास आने की ज़िद अच्छी नहीं।

19 टिप्पणियाँ:

prithvi said...

kya baat hai! ye acha hai ki aap net pe skriya ho rahe hain. sundar !

ओम पुरोहित'कागद' said...

wah!kya pathani pari kheli hai! ek gend me jaise shatak laga diya ho!ek sath itni gazalen!! kya koi badal fat gaya? khair! aanand aa gaya.badi shandar or jandar gazlen hain.padh padh kar fir padha .man nahin bhara.fir padhunga. tab tak ke liye-
khala me kya dekhe mujhe dekh.

kitne suraj chand bujhe dekh..

Narendra Vyas said...

किस-किस शेर पर दाद दें..सभी शेर एक से बढकर एक । बस यही कहूंगा, वाह।।वाह।।वाह।। बहुत ही कम पढने को मिलती हैं इतनी उम्‍दा और खूबसूरत अश'आर लिए गजल। आपका बहुत शुक्रिया और आभार ।

Anonymous said...

bahut achha likha hai rajesh ji i like these lines " मेरी छत किसी का फ़र्श है मेरा फ़र्श किसी की छत,
नाम मेरा मक़ान पे लगाने की ज़िद अच्छी नहीं।
मैं भी सेकूं तुम भी सेको अपनी-अपनी आग पर,
बाँट कर रोटी यहाँ खाने की ज़िद अच्छी नहीं।"

AAPNI BHASHA - AAPNI BAAT said...

वाह, वाह! राजेशजी, इत्ती प्यारी-प्यारी ग़ज़लां! जी करै जाणै थानै काजळियो बणाल्यूं, थानै नैणां में रमाल्यूं।
-सत्यनारायण सोनी

डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी said...

aadarniya rajeshji,
aapki gazal padhakar sukun mila. shandaar prastuti ke liye badhai!!!!!!!!!
aapka sufiana andaaj dilkash hai.
JK Soni

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Maikya Chaddha Saab,
Chha gaye tussi!
Vot vadhiya likha hai! Zid karna changi gal nee!

दीनदयाल शर्मा said...

मेरी छत किसी का फ़र्श है मेरा फ़र्श किसी की छत,
नाम मेरा मक़ान पे लगाने की ज़िद अच्छी नहीं।
क्या बात है...बहुत सुन्दर राजेश जी... हार्दिक बधाई.

Anonymous said...

Shandaar prastuti ke liye badhai!!!!!!!!!
RAJESH JI HAMARE BLOG PAR NA AAO , YE JIDD ACHHI NAHIN . EK CHHOTA SA KALAKAAR .

NAVRATAN SARASWAT said...

aapke ser bahut achhe lage.............
hum v thoda likhne ki kosis karte he.............aap jesa nahi.........bahut badiya si g

चैन सिंह शेखावत said...

'घर तो घर है देर से आने की ज़िद अच्छी नहीं।'
बेहतरीन ग़ज़ल है राजेश जी.
बहुत-बहुत बधाई
उसी अंदाज़ में पढ़ीं,जैसे आप रेडिओ पर बोलते हैं.
http://shekhawatchain.blogspot.com

नीरज दइया said...

बहुत सुंदर रचनाओं के लिए कोटि-कोटि बधाई ।

पृथ्‍वी said...

दूरियां मिट जाएँगी आँखों में तुम आओ तो सही,
सीढ़ियों से हो के पास आने की ज़िद अच्छी नहीं।

>>> इंटरनेट को सलाम करते हुए जिसने दुनिया के मोड़ पर आपकी ग़ज़ल पढने का मौका दिया. बहुत अच्‍छी प्रभावी रचना. खूब..

स्वाति said...

माना दर-ओ-दीवार ने बढ़ कर कभी रोका नहीं,
घर तो घर है देर से आने की ज़िद अच्छी नहीं।

सभी शेर एक से बढकर एक हैं.बहुत सुंदर !!

स्वाति said...

please word verification hata dijiye . tippani dene me asuvidha hoti hai..

Anonymous said...

दूरियां मिट जाएँगी आँखों में तुम आओ तो सही,
सीढ़ियों से हो के पास आने की ज़िद अच्छी नहीं।

WAAH WAAH JI WAAH WAAH...!!

सुनील गज्जाणी said...

मेरी छत किसी का फ़र्श है मेरा फ़र्श किसी की छत,
नाम मेरा मक़ान पे लगाने की ज़िद अच्छी नहीं।
rajesh jee , bahut khoob surti se aap ne ek darshan samne rakh diya , har sher achha hai , magar meri pasand aap ki nazar kiya hai,
sadhuwad ,

नीरज गोस्वामी said...

मैं भी सेकूं तुम भी सेको अपनी-अपनी आग पर,
बाँट कर रोटी यहाँ खाने की ज़िद अच्छी नहीं

वाह राजेश जी वाह...आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ और सच कहूँ दिल यहाँ से जाने को कर ही नहीं रहा..आपने बेहतरीन ग़ज़ल कही है...कहन में ताजगी देख कर दिल खुश हो गया..मेरी दाद कबूल करें..
नीरज

Amrita Tanmay said...

राजेश जी बहुत दिनों के बाद आपको पढ़कर अच्छा लगा . मुझे बेहतरीन रचनाओं की तलाश हमेशा से रही है जो आपमें मिली . आपके मोतिओं का इंतजार है .

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