उम्र कहने को हर रोज बढ़ी जाए है,
जिंदगी साल में दो चार घड़ी आए है।
अनवरत इसकी तरफ देख लें लेकिन,
जिंदगी किरच सी आंखों में गड़ी जाए है।
जब भी उधड़ें हैं हम संवरने के लिए,
जिंदगी टाट सी मखमल में जड़ी जाए है।
हिसाब-ए उम्र हम लिखते हैं टूट जाते हैं,
जिंदगी नोक से हर बार घड़ी जाए है।
अब तो बस उम्र हमें सोने की इजाजत दे दे,
जिंदगी सफर में कब तक यूं खड़ी जाए है।
जिंदगी साल में दो चार घड़ी आए है।
अनवरत इसकी तरफ देख लें लेकिन,
जिंदगी किरच सी आंखों में गड़ी जाए है।
जब भी उधड़ें हैं हम संवरने के लिए,
जिंदगी टाट सी मखमल में जड़ी जाए है।
हिसाब-ए उम्र हम लिखते हैं टूट जाते हैं,
जिंदगी नोक से हर बार घड़ी जाए है।
अब तो बस उम्र हमें सोने की इजाजत दे दे,
जिंदगी सफर में कब तक यूं खड़ी जाए है।
1 टिप्पणियाँ:
मुश्किल काफिये को बड़े हुनर से निभा ले गए हैं आप...बधाई स्वीकार करें..
नीरज
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