-सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...जैसी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना के रचनाकार ’मोहम्मद इक़बाल’ का जन्म 9 नवंबर, 1877 को पंजाब के सियालकोट में हुआ,जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है ।
-इक़बाल ने अपने काव्य में ‘इंक़लाब’ (क्रान्ति) का प्रयोग राजनीतिक तथा सामाजिक परिवर्तन के अर्थों में किया और शायरी को क्रान्ति का वस्तु-विषय दिया।
-पूँजीपति - मज़दूर
-ज़मींदार - किसान
-स्वामी - सेवक
-शासक - पराधीन
-इन सभी की परस्पर खींचातानी के जो विषय हम आज की शायरी में देखते हैं, उन पर इक़बाल ने क़लम उठाई और इसी से उनके बाद की पीढ़ी प्रभावित हुई ।
-यह प्रभाव राष्ट्रवादी - रोमांसवादी - क्रान्तिवादी शायरों से होता हुआ आधुनिक काल के प्रगतिशील शायरों तक पहुँचा है ।
-इक़बाल का निधन 21 अप्रैल, 1938 को हुआ ।
-उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली की ‘जौहर’ पत्रिका के "इक़बाल" विशेषांक में "महात्मा गांधी" का एक पत्र छपा था-
- "….डॉ. इक़बाल मरहूम के बारे में क्या लिखूँ? लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूँ कि जब उनकी मशहूर नज्म ‘हिन्दोस्तां हमारा’ पढ़ी तो मेरी दिल भर आया और मैंने बड़ोदा जेल में तो सैंकड़ों बार इस नज्म को गाया होगा…"
-इक़बाल की नज्में और ग़ज़लें हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता और भारतीय सांस्कृतिक बोध की गहरी छाप लिए हमारे बीच रहेंगी........
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शमअ से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से, ज़इफ़ों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
-इक़बाल ने अपने काव्य में ‘इंक़लाब’ (क्रान्ति) का प्रयोग राजनीतिक तथा सामाजिक परिवर्तन के अर्थों में किया और शायरी को क्रान्ति का वस्तु-विषय दिया।
-पूँजीपति - मज़दूर
-ज़मींदार - किसान
-स्वामी - सेवक
-शासक - पराधीन
-इन सभी की परस्पर खींचातानी के जो विषय हम आज की शायरी में देखते हैं, उन पर इक़बाल ने क़लम उठाई और इसी से उनके बाद की पीढ़ी प्रभावित हुई ।
-यह प्रभाव राष्ट्रवादी - रोमांसवादी - क्रान्तिवादी शायरों से होता हुआ आधुनिक काल के प्रगतिशील शायरों तक पहुँचा है ।
-इक़बाल का निधन 21 अप्रैल, 1938 को हुआ ।
-उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली की ‘जौहर’ पत्रिका के "इक़बाल" विशेषांक में "महात्मा गांधी" का एक पत्र छपा था-
- "….डॉ. इक़बाल मरहूम के बारे में क्या लिखूँ? लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूँ कि जब उनकी मशहूर नज्म ‘हिन्दोस्तां हमारा’ पढ़ी तो मेरी दिल भर आया और मैंने बड़ोदा जेल में तो सैंकड़ों बार इस नज्म को गाया होगा…"
-इक़बाल की नज्में और ग़ज़लें हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता और भारतीय सांस्कृतिक बोध की गहरी छाप लिए हमारे बीच रहेंगी........
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शमअ से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से, ज़इफ़ों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको