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Thursday, March 31, 2011

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा/राजेश चड्ढ़ा

-सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...जैसी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना के रचनाकार ’मोहम्मद इक़बाल’ का जन्म 9 नवंबर, 1877 को पंजाब के सियालकोट में हुआ,जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है ।

 -इक़बाल ने अपने काव्य में ‘इंक़लाब’ (क्रान्ति) का प्रयोग राजनीतिक तथा सामाजिक परिवर्तन के अर्थों में किया और शायरी को क्रान्ति का वस्तु-विषय दिया।

 -पूँजीपति - मज़दूर

 -ज़मींदार - किसान

 -स्वामी - सेवक

-शासक - पराधीन

 -इन सभी की परस्पर खींचातानी के जो विषय हम आज की शायरी में देखते हैं, उन पर इक़बाल ने क़लम उठाई और इसी से उनके बाद की पीढ़ी प्रभावित हुई ।

 -यह प्रभाव राष्ट्रवादी - रोमांसवादी - क्रान्तिवादी शायरों से होता हुआ आधुनिक काल के प्रगतिशील शायरों तक पहुँचा है ।

 -इक़बाल का निधन 21 अप्रैल, 1938 को हुआ ।

 -उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली की ‘जौहर’ पत्रिका के "इक़बाल" विशेषांक में "महात्मा गांधी" का एक पत्र छपा था-

- "….डॉ. इक़बाल मरहूम के बारे में क्या लिखूँ? लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूँ कि जब उनकी मशहूर नज्म ‘हिन्दोस्तां हमारा’ पढ़ी तो मेरी दिल भर आया और मैंने बड़ोदा जेल में तो सैंकड़ों बार इस नज्म को गाया होगा…"

-इक़बाल की नज्में और ग़ज़लें हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता और भारतीय सांस्कृतिक बोध की गहरी छाप लिए हमारे बीच रहेंगी........


लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी

ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी


दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये

हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये


हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत

जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत


ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब

इल्म की शमअ से हो मुझको मोहब्बत या रब


हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना

दर्द-मंदों से, ज़इफ़ों से मोहब्बत करना


मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको

नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको

Wednesday, March 23, 2011

कालीबंगा से प्राप्त प्रागैतिहासिक हड़प्पा (सिंधु घाटी) सभ्यता के अवशेष

-इतिहास-विद "वाकणकर" के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर २०० से अधिक नगर बसे थे, जो हड़प्पाकालीन हैं। इस कारण इसे 'सिंधुघाटी की सभ्यता' के स्थान पर 'सरस्वती नदी की सभ्यता' कहना चाहिए।

-इस तस्वीर को देख कर नहीं लगता.........!


"कभी कुछ कह भी देते हैं,

कभी कुछ सुन भी लेते हैं।

ये पत्थर खंडहरों वाले ,

किसी के घर का हिस्सा हैं।".......राजेश चड्ढा

Tuesday, March 15, 2011

उदय प्रकाश- जितने अच्छे कथाकार-उतने ही अच्छे कवि / राजेश चड्ढ़ा

किसी श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में ना जाने कितने ही लेखक लिखते हैं । किसी श्रेष्ठ वक्ता के रूप में ना जाने कितने ही विद्व-जन बोलते हैं । सदियों की परिभाषाएं-परंपराएं बोलती हैं । इसी के परिचायक हैं ’उदयप्रकाश’ ।

उदय प्रकाश अप्रतिम कवि और कथाकार हैं। उनकी कृतियां हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उदय प्रकाश ने प्रेमचंद के बाद सबसे अधिक अपने समय को पकड़ा है, समय को लिखा है। पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। मोहनदास कहानी, जिस पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार उदयप्रकाश को मिला है-ये कहानी आजादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद दिलाता है कि सत्ताकेंद्रिक व्यवस्था में एक निर्बल, सत्ताहीन और गरीब मनुष्य की अस्मिता तक उससे छीनी जा सकती है।

कहानी विधा के बारे में उदय प्रकाश का मानना है-कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है।

1 जनवरी 1952 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जन्मे कवि-कथाकार और फ़िल्मकार के रूप में प्रख्यात हो चुके उदय प्रकाश अपनी पीढ़ी के समर्थतम रचनाकारों में से हैं ।

इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर बहु चर्चित लघु फिल्में प्रसार भारती के लिए निर्देशित-निर्मित की हैं। भारतीय कृषि का इतिहास पर महत्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' राष्ट्रीय चैनल के लिए निर्देशित कर चुके हैं।

1980 में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित ,ओम प्रकाश सम्मान,श्रीकांत वर्मा पुरस्कार,मुक्तिबोध सम्मान,साहित्यकार सम्मान, अमरीका का पेन ग्रांट और हाल का सार्क सम्मान तथा 2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार, ('मोहन दास' के लिये) उन्हें मिल चुका है।

अपने बारे में उदयप्रकाश कहते हैं-"मैं मूलत: कवि ही हूं। इसको मैं भी जानता हूं और पाठक भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मजाक में कहा कहता हूं कि मैं एक ऐसा कुम्हार हूं जिसने धोखे से कभी एक कमीज सिल दी और अब उसे सब दर्जी कह रहे हैं। सच यह है कि मैं कुम्हार ही हूं।"

उदय प्रकाश अपनी एक कविता..'एक भाषा हुआ करती है’ में कहते हैं-

"एक भाषा हुआ करती है
जिसमें जितनी बार मैं लिखना चाहता हूँ ‘आँसू’ से मिलता-जुलता कोई शब्द
हर बार बहने लगती है रक्त की धार....."

सन 2009 में उदयप्रकाश का इसी शीर्षक से यानि..एक भाषा हुआ करती है-नामक कविता संग्रह  प्रकाशन में आया ।जैसा कि लगभग निश्चित है । अच्छे कवि की कथाएं बहुत अच्छी होती हैं विशेष रूप से ये उदय प्रकाश जी के साथ तो है ही ।

कविता संग्रह-’'एक भाषा हुआ करती है"-की एक कविता-"एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े"-

 -----एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े / उदय प्रकाश-----


 कविता का एक वाक्य लिखने में दो मिनट लगते है

इतनी देर में चालीस हज़ार बच्चे मर चुके होते हैं

ज़्यादातर तीसरी दुनिया के भूख और रोग से



दस वाक्यों की ख़राब ज़ल्दबाज़ कविता में अमूमन लग जाते हैं

बीस से पच्चीस मिनट

इतनी देर में चार से पांच लाख बच्चे समा जाते हैं

मौत के मुंह में

कविता अच्छी हो इतनी कि कवि और आलोचक

उसे कविता कहना पसंद न करें या उसके कई ड्राफ्ट तैयार हों

तो तब तक कई करोड़ बच्चे, कई हज़ार या लाख औरतें और नागरिक

मर चुके होते हैं निरपराध इस विश्वतंत्र में



यानी ज़्यादा मुकम्मल कविता के नीचे

एक ज़्यादा बड़ा शमशान होता है



जितना बड़ा शमशान

उतना ही कवि और राष्ट्र महान्

Wednesday, March 09, 2011

किताबें / राजेश चड्ढ़ा

किताबें-

वक्त को

उंगली पकड़ कर,

सीढ़ियां

चढ़ना सिखाती हैं।

सच तो ये है-

हर सदी में

पीढ़ियों को,

पीढ़ियां

पढ़ना सिखाती हैं।

Wednesday, March 02, 2011

तू नहीं आया--अमृता प्रीतम / राजेश चड्ढ़ा

-भारतीय साहित्य-जगत् में अमृता प्रीतम की छवि एक ऐसी छवि है जिसने.... जीवन जीने में..... और.... कविता रचने में.... किसी विभाजक सीमा-रेखा को... बीच में नहीं आने दिया.....



-अमृता इतनी पारदर्शी रहीं कि उन्हें पढ़ना... स्वयं अपने को नये सिरे से पहचानना है.....



 -जीवन तथा जगत् के प्राण से, मानव-हृदय की धड़कन से साक्षात्कार करना है......



-नारी की शारीरिक....मानसिक....और भावनात्मक संरचना के.....ज्ञान और अनुभव को.....असाधारण परिस्थिति में....तनावों....संघर्षों...तथा प्रेम के सहज आवेगों की आँच को......अमृता ने भोगा है....



-अमृता प्रीतम का कृतित्व इस बात का प्रमाण भी है कि पंजाबी कविता की.... अपनी एक अलग पहचान है.....उसकी अपनी शक्ति है.....अपना सौन्दर्य है.... अपना तेवर है...



-अमृता प्रीतम उसका श्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करती हैं------उनकी बेहतरीन कविताओं में से... एक बेहतरीन कविता.....





.......तू नहीं आया........



चैत ने करवट ली

रंगों के मेले के लिए

फूलों ने रेशम बटोरा

-तू नहीं आया



दोपहरें लम्बी हो गयीं,

दाख़ों को लाली छू गयी

दराँती ने गेहूँ की बालियाँ चूम लीं

-तू नहीं आया



बादलों की दुनिया छा गयी,

धरती ने हाथों को बढ़ाया

आसमान की रहमत पी ली

-तू नहीं आया



पेड़ों ने जादू कर दिया,

जंगल से आयी हवा के

होठों में शहद भर गया

-तू नहीं आया



ऋतु ने एक टोना कर दिया,

और चाँद ने आ कर

रात के माथे पर झूमर लटका दिया

-तू नहीं आया



आज तारों ने फिर कहा,

उम्र के महल में अब भी

हुस्न के दीये से जल रहे

-तू नहीं आया



किरणों का झुरमुट कह रहा,

रातों की गहरी नींद से

उजाला अब भी जागता

-तू नहीं आया ।
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