मेरे सामर्थ्य को चुनौती मत दो,
दर्द में बेशक कटौती मत दो।
बंधक है मेरे पास खुदगर्जी आपकी,
मुझे सहानुभूति की फिरौती मत दो।
रोशनी उधार की घर चाट जाएगी,
अपने नाम की रंगीन ज्योति मत दो।
छीन कर खाने की तुम्हें आदत है,
मेरे मासूम से बच्चे को रोटी मत दो।
दर्द में बेशक कटौती मत दो।
बंधक है मेरे पास खुदगर्जी आपकी,
मुझे सहानुभूति की फिरौती मत दो।
रोशनी उधार की घर चाट जाएगी,
अपने नाम की रंगीन ज्योति मत दो।
छीन कर खाने की तुम्हें आदत है,
मेरे मासूम से बच्चे को रोटी मत दो।
2 टिप्पणियाँ:
बिलकुल नए काफिये वाली ये ग़ज़ल बहुत असरदार है..वाह...
नीरज
ACHHA KATAKSH;
ZANANE K HALAT PAR
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