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Wednesday, May 18, 2011

ख़ुद से ख़िलाफ़त / राजेश चड्ढ़ा


यूं ही-बस

बेख़याली में,

किसी अपने को-

सच्ची बात

कह कर,

जब पराया

कर लिया मैंने,

उसी दिन से

ख़िलाफ़त-

ख़ुद की

करता हूं।

मैं क़िस्से

रोज़

गढ़ता हूं।

मौहब्बत

लिख के,

चेहरे पर-

मौहब्बत

को ही

पढ़ता हूं

12 टिप्पणियाँ:

Manoj K said...

मौहब्बत

लिख के,

चेहरे पर-

मौहब्बत

को ही

पढ़ता हूं


--
क्या कह दिया हुज़ूर.. बहत ही बढ़िया.
ब्लॉग का नया रूप मस्त लग रहा है !!

राजेश चड्ढ़ा said...

मनोज जी शुक्रिया...!

Kailash Sharma said...

बहुत खूब! कमाल की रचना है..

राजेश चड्ढ़ा said...

धन्यवाद कैलाश जी

Anonymous said...

वाह....राजेश जी.......क्या खूब कहा है.......शानदार....लाजवाब


किसी अपने को-

सच्ची बात

कह कर,

जब पराया

कर लिया मैंने,

Dr (Miss) Sharad Singh said...

शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....

राजेश चड्ढ़ा said...

शुक्रिया...इमरान जी...मेहरबानी..शरद जी...

Anju said...

यूँ ही
बस
बेख्याली में.....
भावपूर्ण रचना ...!

राजेश चड्ढ़ा said...

शुक्रिया ...अंजु जी

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut khoob chadha ji...aaj pahli bar aapke blog par aai hun ..achha lga

राजेश चड्ढ़ा said...

स्वागत ... सुमन जी.....

rahul said...

Vah sir hmari bat likh di apne

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