Subscribe:

कुल प्रविष्ठियां / टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर

Wednesday, March 09, 2011

किताबें / राजेश चड्ढ़ा

किताबें-

वक्त को

उंगली पकड़ कर,

सीढ़ियां

चढ़ना सिखाती हैं।

सच तो ये है-

हर सदी में

पीढ़ियों को,

पीढ़ियां

पढ़ना सिखाती हैं।

10 टिप्पणियाँ:

Manoj K said...

यह किताबें अगर ना होती तो शायद हमारे जैसों की हालत और हालात बहुत खराब होते..

चैन सिंह शेखावत said...

वाकई ...
किताबों की खूबसूरती क्या खूब बयान की है आपने.

Anonymous said...

राजेश जी,

बहुत खूब...कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गएँ......किताबों से बढकर कोई सच्चा साथी नहीं होता|

राजेश चड्ढ़ा said...

मन की बात थी...सो कह दी....आपने स्नेह दिया आभार ...शेखावत जी,मनोज जी और इमरान भाई...

Anju said...

बहुत ही सही कहा है...
कहा ये भी जाता है
किताबे अच्छी दोस्ती निभाती हैं
ये न रूठती,और न ही सताती हैं ...
किसी पन्ने पर नाराज़गी,
तो किसी पर मनाती हैं
कही भूले से जो भटक जाये
पलट कर राह भी दिखाती हैं..खैर
it's good

राजेश चड्ढ़ा said...

बात को बेहदख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया है...अंजु आपने...शुक्रिया..

Dr (Miss) Sharad Singh said...

किताबों पर संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।

राजेश चड्ढ़ा said...

डॉ सिंह ...बहुत-बहुत धन्यवाद..स्वागत है आपका...

Unknown said...

Bahut hi Shandar Sir Ji....

राजेश चड्ढ़ा said...

स्वागत है लखन भाई

Post a Comment

free counters