मैं हूं ! अकबर इलाहबादी
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हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
-16 नवम्बर सन 1846 को जन्मे अकबर इलाहाबादी रूढ़िवादिता एवं धार्मिक ढोंग क...
7 years ago
10 टिप्पणियाँ:
यह किताबें अगर ना होती तो शायद हमारे जैसों की हालत और हालात बहुत खराब होते..
वाकई ...
किताबों की खूबसूरती क्या खूब बयान की है आपने.
राजेश जी,
बहुत खूब...कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गएँ......किताबों से बढकर कोई सच्चा साथी नहीं होता|
मन की बात थी...सो कह दी....आपने स्नेह दिया आभार ...शेखावत जी,मनोज जी और इमरान भाई...
बहुत ही सही कहा है...
कहा ये भी जाता है
किताबे अच्छी दोस्ती निभाती हैं
ये न रूठती,और न ही सताती हैं ...
किसी पन्ने पर नाराज़गी,
तो किसी पर मनाती हैं
कही भूले से जो भटक जाये
पलट कर राह भी दिखाती हैं..खैर
it's good
बात को बेहदख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया है...अंजु आपने...शुक्रिया..
किताबों पर संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
डॉ सिंह ...बहुत-बहुत धन्यवाद..स्वागत है आपका...
Bahut hi Shandar Sir Ji....
स्वागत है लखन भाई
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