किसी श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में ना जाने कितने ही लेखक लिखते हैं । किसी श्रेष्ठ वक्ता के रूप में ना जाने कितने ही विद्व-जन बोलते हैं । सदियों की परिभाषाएं-परंपराएं बोलती हैं । इसी के परिचायक हैं ’उदयप्रकाश’ ।
उदय प्रकाश अप्रतिम कवि और कथाकार हैं। उनकी कृतियां हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उदय प्रकाश ने प्रेमचंद के बाद सबसे अधिक अपने समय को पकड़ा है, समय को लिखा है। पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। मोहनदास कहानी, जिस पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार उदयप्रकाश को मिला है-ये कहानी आजादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद दिलाता है कि सत्ताकेंद्रिक व्यवस्था में एक निर्बल, सत्ताहीन और गरीब मनुष्य की अस्मिता तक उससे छीनी जा सकती है।
कहानी विधा के बारे में उदय प्रकाश का मानना है-कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है।
1 जनवरी 1952 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जन्मे कवि-कथाकार और फ़िल्मकार के रूप में प्रख्यात हो चुके उदय प्रकाश अपनी पीढ़ी के समर्थतम रचनाकारों में से हैं ।
इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर बहु चर्चित लघु फिल्में प्रसार भारती के लिए निर्देशित-निर्मित की हैं। भारतीय कृषि का इतिहास पर महत्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' राष्ट्रीय चैनल के लिए निर्देशित कर चुके हैं।
1980 में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित ,ओम प्रकाश सम्मान,श्रीकांत वर्मा पुरस्कार,मुक्तिबोध सम्मान,साहित्यकार सम्मान, अमरीका का पेन ग्रांट और हाल का सार्क सम्मान तथा 2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार, ('मोहन दास' के लिये) उन्हें मिल चुका है।
अपने बारे में उदयप्रकाश कहते हैं-"मैं मूलत: कवि ही हूं। इसको मैं भी जानता हूं और पाठक भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मजाक में कहा कहता हूं कि मैं एक ऐसा कुम्हार हूं जिसने धोखे से कभी एक कमीज सिल दी और अब उसे सब दर्जी कह रहे हैं। सच यह है कि मैं कुम्हार ही हूं।"
उदय प्रकाश अपनी एक कविता..'एक भाषा हुआ करती है’ में कहते हैं-
"एक भाषा हुआ करती है
जिसमें जितनी बार मैं लिखना चाहता हूँ ‘आँसू’ से मिलता-जुलता कोई शब्द
हर बार बहने लगती है रक्त की धार....."
सन 2009 में उदयप्रकाश का इसी शीर्षक से यानि..एक भाषा हुआ करती है-नामक कविता संग्रह प्रकाशन में आया ।जैसा कि लगभग निश्चित है । अच्छे कवि की कथाएं बहुत अच्छी होती हैं विशेष रूप से ये उदय प्रकाश जी के साथ तो है ही ।
कविता संग्रह-’'एक भाषा हुआ करती है"-की एक कविता-"एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े"-
-----एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े / उदय प्रकाश-----
कविता का एक वाक्य लिखने में दो मिनट लगते है
इतनी देर में चालीस हज़ार बच्चे मर चुके होते हैं
ज़्यादातर तीसरी दुनिया के भूख और रोग से
दस वाक्यों की ख़राब ज़ल्दबाज़ कविता में अमूमन लग जाते हैं
बीस से पच्चीस मिनट
इतनी देर में चार से पांच लाख बच्चे समा जाते हैं
मौत के मुंह में
कविता अच्छी हो इतनी कि कवि और आलोचक
उसे कविता कहना पसंद न करें या उसके कई ड्राफ्ट तैयार हों
तो तब तक कई करोड़ बच्चे, कई हज़ार या लाख औरतें और नागरिक
मर चुके होते हैं निरपराध इस विश्वतंत्र में
यानी ज़्यादा मुकम्मल कविता के नीचे
एक ज़्यादा बड़ा शमशान होता है
जितना बड़ा शमशान
उतना ही कवि और राष्ट्र महान्
उदय प्रकाश अप्रतिम कवि और कथाकार हैं। उनकी कृतियां हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उदय प्रकाश ने प्रेमचंद के बाद सबसे अधिक अपने समय को पकड़ा है, समय को लिखा है। पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। मोहनदास कहानी, जिस पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार उदयप्रकाश को मिला है-ये कहानी आजादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद दिलाता है कि सत्ताकेंद्रिक व्यवस्था में एक निर्बल, सत्ताहीन और गरीब मनुष्य की अस्मिता तक उससे छीनी जा सकती है।
कहानी विधा के बारे में उदय प्रकाश का मानना है-कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है।
1 जनवरी 1952 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जन्मे कवि-कथाकार और फ़िल्मकार के रूप में प्रख्यात हो चुके उदय प्रकाश अपनी पीढ़ी के समर्थतम रचनाकारों में से हैं ।
इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फिल्में भी बन चुकी हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर बहु चर्चित लघु फिल्में प्रसार भारती के लिए निर्देशित-निर्मित की हैं। भारतीय कृषि का इतिहास पर महत्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' राष्ट्रीय चैनल के लिए निर्देशित कर चुके हैं।
1980 में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित ,ओम प्रकाश सम्मान,श्रीकांत वर्मा पुरस्कार,मुक्तिबोध सम्मान,साहित्यकार सम्मान, अमरीका का पेन ग्रांट और हाल का सार्क सम्मान तथा 2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार, ('मोहन दास' के लिये) उन्हें मिल चुका है।
अपने बारे में उदयप्रकाश कहते हैं-"मैं मूलत: कवि ही हूं। इसको मैं भी जानता हूं और पाठक भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मजाक में कहा कहता हूं कि मैं एक ऐसा कुम्हार हूं जिसने धोखे से कभी एक कमीज सिल दी और अब उसे सब दर्जी कह रहे हैं। सच यह है कि मैं कुम्हार ही हूं।"
उदय प्रकाश अपनी एक कविता..'एक भाषा हुआ करती है’ में कहते हैं-
"एक भाषा हुआ करती है
जिसमें जितनी बार मैं लिखना चाहता हूँ ‘आँसू’ से मिलता-जुलता कोई शब्द
हर बार बहने लगती है रक्त की धार....."
सन 2009 में उदयप्रकाश का इसी शीर्षक से यानि..एक भाषा हुआ करती है-नामक कविता संग्रह प्रकाशन में आया ।जैसा कि लगभग निश्चित है । अच्छे कवि की कथाएं बहुत अच्छी होती हैं विशेष रूप से ये उदय प्रकाश जी के साथ तो है ही ।
कविता संग्रह-’'एक भाषा हुआ करती है"-की एक कविता-"एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े"-
-----एक ज़ल्दबाज़ बुरी कविता में आंकड़े / उदय प्रकाश-----
कविता का एक वाक्य लिखने में दो मिनट लगते है
इतनी देर में चालीस हज़ार बच्चे मर चुके होते हैं
ज़्यादातर तीसरी दुनिया के भूख और रोग से
दस वाक्यों की ख़राब ज़ल्दबाज़ कविता में अमूमन लग जाते हैं
बीस से पच्चीस मिनट
इतनी देर में चार से पांच लाख बच्चे समा जाते हैं
मौत के मुंह में
कविता अच्छी हो इतनी कि कवि और आलोचक
उसे कविता कहना पसंद न करें या उसके कई ड्राफ्ट तैयार हों
तो तब तक कई करोड़ बच्चे, कई हज़ार या लाख औरतें और नागरिक
मर चुके होते हैं निरपराध इस विश्वतंत्र में
यानी ज़्यादा मुकम्मल कविता के नीचे
एक ज़्यादा बड़ा शमशान होता है
जितना बड़ा शमशान
उतना ही कवि और राष्ट्र महान्
7 टिप्पणियाँ:
उदय प्रकाश जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय कराने के लिये आभार..
शुक्रिया शर्मा साहब....अच्छे रचनाकार हैं...मेरे प्रिय रचनाकार हैं..इस लिए शेयर कर लिया...
राजेश जी आभार आपका......एक जल्दबाज़ कविता बहुत अच्छी लगी......सुन्दर
इमरान भाई उदयप्रकाश जी का ..ये काव्यसंग्रह ..." एक भाषा हुआ करती है " पढ़ें....और अच्छा लगेगा...शुक्रिया आपका
उदयप्रकाशजी से परिचय करवाने के लिय धन्यवाद
धन्यवाद तरुण जी
Uday prakashjee ke bare mein padha.achcha lga.shukriya.
Post a Comment