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Thursday, January 06, 2011

ठोकर से जज़्बात मेरे / राजेश चड्ढा

ठोकर से जज़्बात मेरे, चट्टान हुए ।
मेहमां थे जो ज़ख़्म, वो मेज़बान हुए॥

टुकड़ा-टुकड़ा मौत, मेरे हिस्से आई ।
जर्जर हो कर ढ़हता सा, मकान हुए ॥

चमक हमारी यूं तो अब है, गुंबद पर ।
लेकिन धूप से लड़ने के, फ़रमान हुए॥

बुत बन कर जब बैठ गए, तो ख़ुदा हुए।
लफ़्ज़ ज़ुबां से निकले, तो इन्सान हुए ॥

वादा-शिकन ने हाल ही ऐसा, कर छोड़ा ।
हम नोची-खायी लाशों के, शमशान हुए ॥

9 टिप्पणियाँ:

के सी said...

ग़ज़ल बहुत सुंदर है
ये शेर खास पसंद आया

बुत बन कर जब बैठ गए, तो ख़ुदा हुए।
लफ़्ज़ ज़ुबां से निकले, तो इन्सान हुए ॥

राजेश चड्ढ़ा said...

शुक्रिया किशोर जी.....
मुझे यही हक़ीक़त लगी....

Harish Harry said...

jab bot bankar baith gaye to khuda huye....laajawab... zabarmast...

स्वाति said...

बुत बन कर जब बैठ गए, तो ख़ुदा हुए।
लफ़्ज़ ज़ुबां से निकले, तो इन्सान हुए ॥
bahut khoob...

राजेश चड्ढ़ा said...

Harish Harry....स्वाति जी..
शुक्रिया

Anonymous said...

राजेश जी,

वाह.....बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है...दाद कबूल करें ....

ये शेर बहुत पसंद आए-

टुकड़ा-टुकड़ा मौत, मेरे हिस्से आई ।
जर्जर हो कर ढ़हता सा, मकान हुए ॥

बुत बन कर जब बैठ गए, तो ख़ुदा हुए।
लफ़्ज़ ज़ुबां से निकले, तो इन्सान हुए ॥

राजेश चड्ढ़ा said...

इमरान भाई शुक्रिया

Anju said...

अच्छी है , ....क्या...?
ग़ज़ल...पर उम्मीद इससे अलग, कुछ और उम्दा सी रचनाओं की करते है...
नये वर्ष में आपकी बहुत सी रचनाये पढने को मिलेंगी इसी कामना के साथ,
ढेर सारी शुभ कामनाए.......

राजेश चड्ढ़ा said...

अंजू जी.....आने का शुक्रिया....
पसंद किया मेहरबानी.....
आपने कहा है.....!
समयानुसार.. प्रयास करता हूं...
शुभकामनाएं...

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