Subscribe:

कुल प्रविष्ठियां / टिप्पणियां

विजेट आपके ब्लॉग पर

Sunday, October 30, 2011

दिल-विल, प्यार-व्यार को गुज़रे, एक ज़माना, बीत गया ।

वो वक़्त, था जब रांझा जोगी, मजनूं दीवाना, बीत गया ।
--------राजेश चड्ढ़ा

5 टिप्पणियाँ:

Anonymous said...

हाँ जी पर मजनू और राँझा तो आज भी हैं...........हाँ वो बात अलग है की अब लैला और हीर नहीं मिलती :-))

राजेश चड्ढ़ा said...

...जी....इमरान भाई.....! अब ज़माना बीत गया !

Anju said...

जब लैला नहीं ,हीर नहीं मिलती तो ऐसे में मजनू या रांझे के होने की सम्भावना भी नहीं हो सकती .....!मिलना तो बहुत दूर की बात है इमरान जी .....इसलिए ये पुष्टि सर्वथा गलत है ...., जमाने में दोनों ही शामिल होते है .....कोई एक नहीं.शायद..? .....राजेश जी इसलिए जमाना बीतता है तो दोनों के लिए ही.......

राजेश चड्ढ़ा said...

....जी सच है....मैं भी यही कह रहा हूं....लैला या हीर/मंजनू या रांझा....ये सब तो पर्याय हैं....सच्ची मौहब्बत के...जब सच्ची मौहब्बत ही नहीं है ..... तो फिर दो क्या.... एक भी नहीं मिलता.. क्योंकि ....ज़माना बीत गया..!

Harish Harry said...

kuch naya post karen.

Post a Comment

free counters