भाई राजेश जी चड्ढ़ा, सत्-श्री-अकाल! आपके ब्लाग पर भ्रमण कर आनंद आया।आपकी ग़ज़लेँ पढ़ कर यह आनंद सौ गुणा हो गया! हम तो वैसे भी आपकी ग़ज़लोँ के दीवाने हैँ।अब हम क्या कहें! यही कहेँगे- हम से दिल मिला हाथ नहीँ। दिल ही चाहिए साथ नहीँ॥
मैं ग़ज़ल कहता हूँ और
गीत गुनगुनाता हूँ
दिल की करता हुआ
दिल ही में उतर जाता हूँ
प्यार बेहद है मुझे
और है गुनाह यही
प्यार करता हुआ मैं
हद से गुज़र जाता हूँ
मैं हूं ! अकबर इलाहबादी
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तो ...
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ये कैसी लड़की है
सवेर है
मैं तम्हारी तलाश में पड़ी हूँ निकल
शब्द नहीं थे सन्देश
दोपहर है
तुम्हारे घर का दरवाज़ा बंद है
मैं तुम्हे झिर्रियों में से रही हूँ...
9 टिप्पणियाँ:
सुंदर कविता। बधाई।।
sachche dil se mastan bole ,.....shaandar kavita
भाई राजेश जी चड्ढ़ा,
सत्-श्री-अकाल!
आपके ब्लाग पर भ्रमण कर आनंद आया।आपकी ग़ज़लेँ पढ़ कर यह आनंद सौ गुणा हो गया!
हम तो वैसे भी आपकी ग़ज़लोँ के दीवाने हैँ।अब हम क्या कहें! यही कहेँगे-
हम से दिल मिला हाथ नहीँ।
दिल ही चाहिए साथ नहीँ॥
सटीक
जिस का पलडा देखें भारी,
ऐन वक्त पर उस के हो लें
सच कहा...आजकल भलाई इसी में है...
नीरज
तुम भी सच जब ताक पे रखो,
हम भी झूठ कहां तक बोलें
बेहतरीन-सुंदर कविता।
बहुत खूब लिखते हैं आप हम तो आपके फैन हो गए हैं |
जिसका पलडा देखें भारी,
ऐन वक्त पर उस के हो लें...
वाह.......राजेश जी .....शे'र बहुत ही......बढ़िया...बेहतरीन ग़ज़ल.....बधाई......
आपको पढ़ कर अच्छा लगा ......बधाई !
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