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Wednesday, October 13, 2010

आसान कहां होता है/ राजेश चड्ढा

यूं लगा
जैसे
तुम्हारी मौहब्बत
तेज़ बारिश की तरह
बहुत देर तक
मुझ पर
बरसती रही
और जुदाई में
तुम्हारी-मेरी
या
थोड़ी तुम्हारी-थोड़ी मेरी
बेवफ़ाई की हवा ने
उसे
हम पर से
यूं खत्म कर दिया
जैसे
बरसात के बाद
पेड़ों के पत्तों पर ठहरी
पानी की बूंदें
उसी बरसाती हवा की वजह से
कतरा-कतरा
छिटक कर
ज़मीन की मिट्टी में
यूं समा जाएं
कि बरसात के
निशान तक न रहें
लेकिन
मैं !
ये भी तय नहीं कर पाया
कि
गुनाहगार
मैं हूं  !
या
तुम  !
सच है...
मौहब्बत
जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?

14 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

बस यही तो मोहब्बत होती है……………बहुत सुन्दर लिखा है।

राजेश चड्ढ़ा said...

तस्दीक़ का शुक्रिया .......वंदना जी

Anonymous said...

बहुत खूब राजेश जी.......बेहतरीन रचना |

राजेश चड्ढ़ा said...

इमरान अंसारी जी....... मेहरबानी

Manoj K said...

मौहब्बत
जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?

सच बहुत मुश्किल होता है..
आप की कवितायेँ बहुत बढ़िया होती हैं. एक बार दर्शन करने की लालसा है.

लिखते रहिये हम गुनगुनाते रहेंगे.

मनोज

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच है...
मौहब्बत
जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है

बहुत खूबसूरत बात कही है ....

राजेश चड्ढ़ा said...

मनोज जी....संगीता जी.....शुक्रिया

harishharry@blogspot.com said...

asan kahan hai aisi rachnao ki tarif krne k liye shabad dhundhna.

Manish aka Manu Majaal said...

ग़ालिब साहब ने कहा भी है
इश्क में मिट जाता है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देख जीतें है , जिस काफिर पे दम निकले !

लिखते रहिये ...

राजेश चड्ढ़ा said...

harishharry............Majaal........thank's.

चैन सिंह शेखावत said...

दिल को छू गई रचना...
बेहद भावपूर्ण...
बधाई

राजेश चड्ढ़ा said...

धन्यवाद शेखावत जी

धीरेन्द्र गुप्ता"धीर" said...

NAINO KI VITHYO ME PIDAO KA TARAL HAI..
KAGAJ KE JISAM PAR YE SYAHI NAHI GARAL HAI.
SIKKO SE LEKHNI KA KAD KAISE NAPIYEGA...
LIKHNA BAHUT KATHIN HAI BIKNA BAHUT SARAL HAI......MAI TO MUREED HO GAYA AAPKI LEKHNI KA JANAB..dheerendra gupta dheer.blogspot.com

धीरेन्द्र गुप्ता"धीर" said...

हवाओ से प्यारी ग़ज़ल है तुम्हारी..

खुश्बू सी महके है गजले तुम्हारी..

शबर ढूढता हूँ, मिलता नहीं है

लगे छाव जैसी ये गज़ले तुम्हारी....



धीरेन्द्र गुप्ता"धीर" 9414333130

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