यूं ही जिया....
अभिनय-
अगर
कभी किया ,
तो ऐसे किया
जैसे- जीवन हो |
और
जीवन-
जब भी जिया ,
तो ऐसे जिया
जैसे-
अभिनय हो ।
जो-
सहज लगा ,
वही-
सत्य लगा ,
और-
जो सत्य लगा
उसे-
स्वीकार किया |
कभी-
अभिनय में ,
कभी-
जीवन में |
मैं हूं ! अकबर इलाहबादी
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हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
-16 नवम्बर सन 1846 को जन्मे अकबर इलाहाबादी रूढ़िवादिता एवं धार्मिक ढोंग क...
7 years ago
11 टिप्पणियाँ:
वाह ! क्या बात है………………गज़ब शानदार सत्य।यही तो जीवन दर्शन है ।
जीवन ..
कितना बढ़िया लिखा है मालिक.
बहुत दिनों बाद कुछ सादा और साधा हुआ पढ़ा है..
जीवन का सही आकलन...सुंदर रचना।
वाह !सुंदर रचना।
वन्दना jI....Manoj ji....mahendra verma ji ....Mastan bhai....शुक्रिया..
राजेश जी,
बहुत कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता गहरे अर्थ लिए हुए.........बहुत खूब |
इमरान अंसारी भाई....मेहरबानी
वाह ..बहुत खूब ...अभिनय जीवन जैसा ...और जीवन में अभिनय ...सटीक बात कही है .
संगीता स्वरुप जी पसंद करने के लिए शुक्रिया आपका
sunder kavita.. kam shabdo me gahri bat...
स्वाति जी आपका धन्यवाद
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