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Thursday, October 07, 2010

मत मांग गरीब रात से/ राजेश चड्ढा

मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी ,
तोड़ देगी भूख़ तेरी, ये लोहारी हाथ सी रोटी ।

नहीं करेगा कोई तमन्ना, पूरी ख़ाली पेट की,
अरे नहीं मिलेगी तुझे कभी, सौग़ात सी रोटी।

सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।

तेरा जीवन कब तेरा है, मरना तेरा अपना है,
बात-बात में सब देंगे, बस कोरी बात सी रोटी

हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।

13 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी

बहुत अच्छी गज़ल ...रोटी कि ही जद्दोजहद बच गयी है ..

अरुण चन्द्र रॉय said...

हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल.. हर शेर मुक्कमल

के सी said...

हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल.

Anonymous said...

राजेश जी,

आपकी रचनाएँ कुछ अलग होती हैं..........जो हकीक़त को बयाँ करती हैं........शुभकामनायें |

vandana gupta said...

शायद पहली बार आयी हूँ आपके ब्लोग पर मगर क्या खूब लिखते हैं आप्……………ज़िन्दगी सिर्फ़ रोटी की जद्दोजहद मे ही गुजर जाती है और रोटी ना जाने कैसे कैसे खेल दिखाती है……………सब रोटी का खेल है और उसकी महिमा आपने बेहद उम्दा तरीके से प्रस्तुत की है………………हर शेर एक सवाल सा चुभता है……………॥बेहतरीन गज़ल्।

राजेश चड्ढ़ा said...

संगीता स्वरुप जी... arun c roy जी.. Kishore Choudhary जी ...अनामिका जी... इमरान अंसारी जी.. वन्दना जी...आप सभी का धन्यवाद..शायद सर्व-हारा वर्ग की स्थापना का मक़सद ही असली मक़सद है....ये नियमितता बनी रहेगी..इसी उम्मीद के साथ पुनः धन्यवाद.

महेन्‍द्र वर्मा said...

मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी।

यह मिसरा मुझे बहुत पसंद आया...अच्छी ग़ज़ल,...शुभकामनाएं।

सुज्ञ said...

प्रभावशाली भाव निरूपण
सबसे पहले तो नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं आपको और आपके पाठकों को भी

राजेश चड्ढ़ा said...

शुक्रिया महेन्द्र जी....सुज्ञ जी

Manoj K said...

क्या खूब लिखा है,

सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।

जीवन का दर्शन और रोटी, अच्छा लगा.

मनोज खत्री

Amrita Tanmay said...

हाथ जब तंग हो तो फिसलती जाती है रोटी . क्या खूब कही .....................सच ही तो है .

राजेश चड्ढ़ा said...

Amrita Tanmay ji...मनोज जी.....धन्यवाद

harishharry@blogspot.com said...

ye Ghajal lajwab hai.parmpragat ghajal se dur,is daur ki ek aisi ghajal hai jo foolon ko chhodkar kanton k raste pr chali hai.ghajal ko ab aise marg pr hi chalna padega.Unhi likhte rahiye.

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