मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी ,
तोड़ देगी भूख़ तेरी, ये लोहारी हाथ सी रोटी ।
नहीं करेगा कोई तमन्ना, पूरी ख़ाली पेट की,
अरे नहीं मिलेगी तुझे कभी, सौग़ात सी रोटी।
सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।
तेरा जीवन कब तेरा है, मरना तेरा अपना है,
बात-बात में सब देंगे, बस कोरी बात सी रोटी
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
तोड़ देगी भूख़ तेरी, ये लोहारी हाथ सी रोटी ।
नहीं करेगा कोई तमन्ना, पूरी ख़ाली पेट की,
अरे नहीं मिलेगी तुझे कभी, सौग़ात सी रोटी।
सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।
तेरा जीवन कब तेरा है, मरना तेरा अपना है,
बात-बात में सब देंगे, बस कोरी बात सी रोटी
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
13 टिप्पणियाँ:
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी
बहुत अच्छी गज़ल ...रोटी कि ही जद्दोजहद बच गयी है ..
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.. हर शेर मुक्कमल
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.
राजेश जी,
आपकी रचनाएँ कुछ अलग होती हैं..........जो हकीक़त को बयाँ करती हैं........शुभकामनायें |
शायद पहली बार आयी हूँ आपके ब्लोग पर मगर क्या खूब लिखते हैं आप्……………ज़िन्दगी सिर्फ़ रोटी की जद्दोजहद मे ही गुजर जाती है और रोटी ना जाने कैसे कैसे खेल दिखाती है……………सब रोटी का खेल है और उसकी महिमा आपने बेहद उम्दा तरीके से प्रस्तुत की है………………हर शेर एक सवाल सा चुभता है……………॥बेहतरीन गज़ल्।
संगीता स्वरुप जी... arun c roy जी.. Kishore Choudhary जी ...अनामिका जी... इमरान अंसारी जी.. वन्दना जी...आप सभी का धन्यवाद..शायद सर्व-हारा वर्ग की स्थापना का मक़सद ही असली मक़सद है....ये नियमितता बनी रहेगी..इसी उम्मीद के साथ पुनः धन्यवाद.
मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी।
यह मिसरा मुझे बहुत पसंद आया...अच्छी ग़ज़ल,...शुभकामनाएं।
प्रभावशाली भाव निरूपण
सबसे पहले तो नवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं आपको और आपके पाठकों को भी
शुक्रिया महेन्द्र जी....सुज्ञ जी
क्या खूब लिखा है,
सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।
जीवन का दर्शन और रोटी, अच्छा लगा.
मनोज खत्री
हाथ जब तंग हो तो फिसलती जाती है रोटी . क्या खूब कही .....................सच ही तो है .
Amrita Tanmay ji...मनोज जी.....धन्यवाद
ye Ghajal lajwab hai.parmpragat ghajal se dur,is daur ki ek aisi ghajal hai jo foolon ko chhodkar kanton k raste pr chali hai.ghajal ko ab aise marg pr hi chalna padega.Unhi likhte rahiye.
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