उसूल, रसूल का / राजेश चड्ढ़ा
दाग़िस्तान में रचे-बसे
रसूल हमज़ातोव के पिता जी कहा करते थे कि-
लोग जब पहाड़ों से
भेड़ों के रेवड़ के आने का इन्तज़ार करते हैं
तो सबसे पहले उन्हें
हमेशा आगे-आगे आने वाले बकरे के सींग दिखाई देते हैं,
फिर पूरा बकरा नज़र आता है
और इसके बाद ही रेवड़ को देख पाते हैं।
लोग जब शादी के या मातमी जुलूस की राह देखते हैं,
तो पहले उन्हें हरकारा दिखाई देता है।
गांव के लोग जब हरकारे के इन्तज़ार में होते हैं,
तो पहले उन्हें धूल के बादल, फिर घोड़ा और उसके बाद ही
घुड़सवार नज़र आता है।
लोग जब शिकारी के लौटने की प्रतीक्षा में होते हैं,
तो पहले उन्हें उसका कुत्ता ही दिखाई देता है।
हां रसूल, आगाह करता है
पिता का उसूल कि-
आने वाला समय, हमारे दर पर दस्तक दे,
उससे पहले !
हमें देख लेना चाहिए
हद-ए-निगाह तक।
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