दिल-विल, प्यार-व्यार को गुज़रे, एक ज़माना, बीत गया ।
वो वक़्त, था जब रांझा जोगी, मजनूं दीवाना, बीत गया ।
--------राजेश चड्ढ़ा
हाईलाईन-साहित्य संसार 05 सितंबर 2014
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10 years ago
5 टिप्पणियाँ:
हाँ जी पर मजनू और राँझा तो आज भी हैं...........हाँ वो बात अलग है की अब लैला और हीर नहीं मिलती :-))
...जी....इमरान भाई.....! अब ज़माना बीत गया !
जब लैला नहीं ,हीर नहीं मिलती तो ऐसे में मजनू या रांझे के होने की सम्भावना भी नहीं हो सकती .....!मिलना तो बहुत दूर की बात है इमरान जी .....इसलिए ये पुष्टि सर्वथा गलत है ...., जमाने में दोनों ही शामिल होते है .....कोई एक नहीं.शायद..? .....राजेश जी इसलिए जमाना बीतता है तो दोनों के लिए ही.......
....जी सच है....मैं भी यही कह रहा हूं....लैला या हीर/मंजनू या रांझा....ये सब तो पर्याय हैं....सच्ची मौहब्बत के...जब सच्ची मौहब्बत ही नहीं है ..... तो फिर दो क्या.... एक भी नहीं मिलता.. क्योंकि ....ज़माना बीत गया..!
kuch naya post karen.
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