गिरा कर आंख से अपनी, घर से कर दिया बेघर ,
मुझे रुख़सार पर रखते, तुम्हीं में जज़्ब हो जाता ।
-राजेश चड्ढ़ा
हाईलाईन-साहित्य संसार 05 सितंबर 2014
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10 years ago
7 टिप्पणियाँ:
गिरा कर आँख से अपनी घर से कर दिया बेघर,
मुझे रुखसार पर रखते तुम्ही में जज़्ब हो जाता ....वाह !!!बहुत खूब ...
एक नज़रिया ये भी है ............
"घर से बेघर होने में घर के मायने तो मिले
कुछ ऐसे भी थे जिन्हें घर ही नहीं मिले"
अच्छा है उम्दा है ,बाकी तो रचना का, बहुत कुछ होना है........
सुभानाल्लाह ........वाह........वाह
लाजवाब शेर .....
ati sundar
KAHA SE ?
LATE HO ??
ESE JAZBAT !
JO
YATHARTH BHI HAI!
AUR
KALPANA BHI!!
Lajwab...sher.Lajwab...sher.
Anju-इमरान अंसारी-Dr (Miss) Sharad Singh-Ramesh jangir रमेश जांगिड-Ashok Kumar-Harish Harry आप सभी का शुक्रिया
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