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Monday, July 11, 2011

गिरा कर आंख से अपनी, घर से कर दिया बेघर ,

मुझे रुख़सार पर रखते, तुम्हीं में जज़्ब हो जाता ।
-राजेश चड्ढ़ा

7 comments:

  1. गिरा कर आँख से अपनी घर से कर दिया बेघर,
    मुझे रुखसार पर रखते तुम्ही में जज़्ब हो जाता ....वाह !!!बहुत खूब ...
    एक नज़रिया ये भी है ............
    "घर से बेघर होने में घर के मायने तो मिले
    कुछ ऐसे भी थे जिन्हें घर ही नहीं मिले"
    अच्छा है उम्दा है ,बाकी तो रचना का, बहुत कुछ होना है........

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  2. AnonymousJuly 11, 2011

    सुभानाल्लाह ........वाह........वाह

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  3. लाजवाब शेर .....

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  4. KAHA SE ?
    LATE HO ??
    ESE JAZBAT !
    JO
    YATHARTH BHI HAI!
    AUR
    KALPANA BHI!!

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  5. Lajwab...sher.Lajwab...sher.

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  6. Anju-इमरान अंसारी-Dr (Miss) Sharad Singh-Ramesh jangir रमेश जांगिड-Ashok Kumar-Harish Harry आप सभी का शुक्रिया

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