Pages

Saturday, January 15, 2011

सुबकने पर हमारे, उसके होठों पर तबस्सुम आ गया / राजेश चड्ढा

सुबकने पर हमारे, उसके होठों पर तबस्सुम आ गया ।
दास्तां का दौर मुझे दे कर, वो ख़ुद क़ह्क़हे सुना गया ।

बहती हुई मेरी आंखों पर, जैसे ही उसकी नज़र पड़ी ,
सूखी हुई झील की तोहमत वो, मुझ पर ही लगा गया ।

ज़ेहन में मेरे ठहरी हुई थी, धुंध उलझ कर जम सी गई ,
समा ना जाए चुपके से, वो तपिश पर पहरे बिठा गया ।

रिसता हुआ पानी ज़ख़्मों का, उसकी नज़रों की ठंडक था ,
भरे ना ज़ख़्म हरा कर दे, कोई ऐसी मरहम लगा गया ।

ग़ुनाह जो मैंने किए नहीं , वो उनके अंधेरे में इक दिन ,
मेरी चटखी हुई मिन्नत पर, लरज़ता तरन्नुम गा गया।

10 comments:

  1. ज़ेहन में मेरे ठहरी हुई थी, धुंध उलझ कर जम सी गई ,
    समा ना जाए चुपके से, वो तपिश पर पहरे बिठा गया ।

    वाह...बेहतरीन क्या बात है...दाद कबूल करें


    नीरज

    ReplyDelete
  2. ग़ज़ल का हर शेर देर तक बाँध के रखता है. तल्ख़ी-ए-हयात को आपने लफ्ज़ दिये हैं, वाह. बहुत बधाई !

    ReplyDelete
  3. नीरज जी....किशोर भाई...
    धन्यवाद आपका

    ReplyDelete
  4. बहती हुई मेरी आंखों पर, जैसे ही उसकी नज़र पड़ी ,
    सूखी हुई झील की तोहमत वो, मुझ पर ही लगा गया ।

    वाह एक से एक शानदार शेर...........बहुत सुन्दर ग़ज़ल

    ReplyDelete
  5. वन्दना जी...धन्यवाद आपका

    ReplyDelete
  6. बहती हुई मेरी आंखों पर, जैसे ही उसकी नज़र पड़ी ,
    सूखी हुई झील की तोहमत वो, मुझ पर ही लगा गया ।

    बहुत खूब,,,

    मनोज

    ReplyDelete
  7. राजेश जी,

    शानदार ग़ज़ल.....हर शेर बेहतरीन लगा.....बहुत खूब|

    ReplyDelete
  8. मनोज जी.....इमरान जी ....शुक्रिया...

    ReplyDelete
  9. रिसता हुआ पानी जख्मों का ,उसकी नजरों की ठंडक था
    भरे न जख्म हर कर दे कोई ऐसी मरहम लगा गया ................
    गुनाह जो मैंने किये नही वो उनके अँधेरे में एक दिन
    मेरी चटकी हुई मिन्नत पर लरजता तरन्नुम गा गया........
    बहुत ही उम्दा कहा है.....शायद बहुत से दिलों की बात हो

    दुःख के कारन तक पहुँचने से पहले ,दुःख की राह से गुज़ारना लाजिम होता है.....

    ReplyDelete
  10. अंजू जी.....प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया आपका

    ReplyDelete