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Tuesday, October 26, 2010

कविता / यूं ही जिया / राजेश चड्ढ़ा

यूं ही जिया....

अभिनय-
अगर
कभी किया ,
तो ऐसे किया
जैसे- जीवन हो |
और
जीवन-
जब भी जिया ,
तो ऐसे जिया
जैसे-
अभिनय हो ।
जो-
सहज लगा ,
वही-
सत्य लगा ,
और-
जो सत्य लगा
उसे-
स्वीकार किया |
कभी-
अभिनय में ,
कभी-
जीवन में |

11 comments:

  1. वाह ! क्या बात है………………गज़ब शानदार सत्य।यही तो जीवन दर्शन है ।

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  2. जीवन ..
    कितना बढ़िया लिखा है मालिक.
    बहुत दिनों बाद कुछ सादा और साधा हुआ पढ़ा है..

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  3. जीवन का सही आकलन...सुंदर रचना।

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  4. वाह !सुंदर रचना।

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  5. वन्दना jI....Manoj ji....mahendra verma ji ....Mastan bhai....शुक्रिया..

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  6. राजेश जी,

    बहुत कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता गहरे अर्थ लिए हुए.........बहुत खूब |

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  7. इमरान अंसारी भाई....मेहरबानी

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  8. वाह ..बहुत खूब ...अभिनय जीवन जैसा ...और जीवन में अभिनय ...सटीक बात कही है .

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  9. संगीता स्वरुप जी पसंद करने के लिए शुक्रिया आपका

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  10. sunder kavita.. kam shabdo me gahri bat...

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  11. स्वाति जी आपका धन्यवाद

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