सोच के कागज़ पर ..... लफ़्ज़ों की शक्ल में .... जब कोई रहता है... तो बहुत ही उम्दा सी कोई कविता कहता है ....... है न ........! जैसे ये कविता... ग़ज़ल तो खूबसूरत थी ही ..... अब तो काव्य रंग भी निखार पर है..... बहुत बहुत बधाई ...!शायर का कवि होना.......बेहतरीन भाव........!
सूरज भर
ReplyDeleteछिपते फिरे हो...
अब चांद भर
दिख जाओ...
bhai waah...gazab ke bhaav aur shabd h..
badhai..
सूरज भर
ReplyDeleteछिपते फिरे हो...
अब चांद भर
दिख जाओ...
मैं तो यहाँ दिख भी गया और यहाँ लिख भी रहा हूँ, सच, ब्लॉग पर यहाँ लिखने का आमंत्रण अच्छा लगा.
आपकी रचनाएँ ब्लॉग पर ज़्यादा भाती हैं. यहाँ नियमित रूप से लिखिए हुज़ूर.
मनोज
इतना आसान भी नहीं भुला पाना.चाहे वो सूरज बन जाए या चंदा हर रूप में आएगा आप की सोचों में.
ReplyDeleteसुंदर कविता.
शेखावत जी...... ana जी......... Manoj जी........ अनामिका जी.....धन्यवाद आप सभी का
ReplyDeleteराजेश जी,
ReplyDeleteहमेशा ही लिखा है......आज भी लिख देते हैं.......बढ़िया रचना|
बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteaapne likha hai bahut khoob.hum to padhte padhte gaye kavita mein doob.
ReplyDeleteकविता की अनुभूति बड़ी विनम्र है. इसे फेसबुक पर भी देखा था लेकिन हर बार नए अर्थ, नए तरीके से खुलते हैं.
ReplyDeleteइमरान अंसारी जी .....वन्दना जी.....harishharry jI ....Kishore bhaaI....meharabaanI
ReplyDeleteखुबसूरत , उम्दा.................... रचना
ReplyDeletethanks..Amrita Tanmay
ReplyDeleteसोच के कागज़ पर .....
ReplyDeleteलफ़्ज़ों की शक्ल में ....
जब कोई रहता है...
तो बहुत ही उम्दा सी कोई कविता कहता है .......
है न ........! जैसे ये कविता...
ग़ज़ल तो खूबसूरत थी ही .....
अब तो काव्य रंग भी निखार पर है.....
बहुत बहुत बधाई ...!शायर का कवि होना.......बेहतरीन भाव........!
....लफ़्ज़ों की क़द्र करने के लिए धन्यवाद......
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