यूं लगा
जैसे
जैसे
तुम्हारी मौहब्बत
तेज़ बारिश की तरह
बहुत देर तक
मुझ पर
तेज़ बारिश की तरह
बहुत देर तक
मुझ पर
बरसती रही
और जुदाई में
तुम्हारी-मेरी
या
थोड़ी तुम्हारी-थोड़ी मेरी
बेवफ़ाई की हवा ने
उसे
और जुदाई में
तुम्हारी-मेरी
या
थोड़ी तुम्हारी-थोड़ी मेरी
बेवफ़ाई की हवा ने
उसे
हम पर से
यूं खत्म कर दिया
जैसे
यूं खत्म कर दिया
जैसे
बरसात के बाद
पेड़ों के पत्तों पर ठहरी
पानी की बूंदें
उसी बरसाती हवा की वजह से
कतरा-कतरा
पेड़ों के पत्तों पर ठहरी
पानी की बूंदें
उसी बरसाती हवा की वजह से
कतरा-कतरा
छिटक कर
ज़मीन की मिट्टी में
यूं समा जाएं
कि बरसात के
ज़मीन की मिट्टी में
यूं समा जाएं
कि बरसात के
निशान तक न रहें
लेकिन
मैं !
ये भी तय नहीं कर पाया
कि
लेकिन
मैं !
ये भी तय नहीं कर पाया
कि
गुनाहगार
मैं हूं !
मैं हूं !
या
तुम !
सच है...
मौहब्बत
सच है...
मौहब्बत
जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?

बस यही तो मोहब्बत होती है……………बहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteतस्दीक़ का शुक्रिया .......वंदना जी
ReplyDeleteबहुत खूब राजेश जी.......बेहतरीन रचना |
ReplyDeleteइमरान अंसारी जी....... मेहरबानी
ReplyDeleteमौहब्बत
ReplyDeleteजब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है ?
सच बहुत मुश्किल होता है..
आप की कवितायेँ बहुत बढ़िया होती हैं. एक बार दर्शन करने की लालसा है.
लिखते रहिये हम गुनगुनाते रहेंगे.
मनोज
सच है...
ReplyDeleteमौहब्बत
जब हद से बढ़ कर हो
तो इल्ज़ाम देना
आसान कहां होता है
बहुत खूबसूरत बात कही है ....
मनोज जी....संगीता जी.....शुक्रिया
ReplyDeleteasan kahan hai aisi rachnao ki tarif krne k liye shabad dhundhna.
ReplyDeleteग़ालिब साहब ने कहा भी है
ReplyDeleteइश्क में मिट जाता है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देख जीतें है , जिस काफिर पे दम निकले !
लिखते रहिये ...
harishharry............Majaal........thank's.
ReplyDeleteदिल को छू गई रचना...
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण...
बधाई
धन्यवाद शेखावत जी
ReplyDeleteNAINO KI VITHYO ME PIDAO KA TARAL HAI..
ReplyDeleteKAGAJ KE JISAM PAR YE SYAHI NAHI GARAL HAI.
SIKKO SE LEKHNI KA KAD KAISE NAPIYEGA...
LIKHNA BAHUT KATHIN HAI BIKNA BAHUT SARAL HAI......MAI TO MUREED HO GAYA AAPKI LEKHNI KA JANAB..dheerendra gupta dheer.blogspot.com
हवाओ से प्यारी ग़ज़ल है तुम्हारी..
ReplyDeleteखुश्बू सी महके है गजले तुम्हारी..
शबर ढूढता हूँ, मिलता नहीं है
लगे छाव जैसी ये गज़ले तुम्हारी....
धीरेन्द्र गुप्ता"धीर" 9414333130