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Wednesday, November 09, 2011

यूं ही तो नहीं होता, कुछ भी /राजेश चड्ढ़ा


यूं ही तो नहीं होता,

कुछ भी.

कोई ख़याल,

किसी वजह की,

कोख़ में ही,

लेता है जन्म.

होता है बड़ा,

काग़ज़ के,

आंगन में

12 comments:

  1. राजेश जी इस खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. नीरज जी......आपका स्नेह बना रहे.....आभार.

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  3. शुक्रिया अनुपमा जी.

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  4. धन्यवाद अनामिका जी...

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  5. यूँ ही .....नहीं होता कुछ भी .......सुंदर ...!!!!!!!!!
    ब्लॉग पर फिर से हाज़िर होने के लिए धन्यवाद

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  6. बस...आपका स्नेह बना रहे.....आभार....अंजु जी

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  7. छोटी किन्तु भावपूर्ण पोस्ट........बहुत सुन्दर लगी|

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  8. शुक्रिया........इमरान भाई..

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  9. हैरी....शुक्रिया....!

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