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Wednesday, March 09, 2011

किताबें / राजेश चड्ढ़ा

किताबें-

वक्त को

उंगली पकड़ कर,

सीढ़ियां

चढ़ना सिखाती हैं।

सच तो ये है-

हर सदी में

पीढ़ियों को,

पीढ़ियां

पढ़ना सिखाती हैं।

10 comments:

  1. यह किताबें अगर ना होती तो शायद हमारे जैसों की हालत और हालात बहुत खराब होते..

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  2. वाकई ...
    किताबों की खूबसूरती क्या खूब बयान की है आपने.

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  3. राजेश जी,

    बहुत खूब...कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गएँ......किताबों से बढकर कोई सच्चा साथी नहीं होता|

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  4. मन की बात थी...सो कह दी....आपने स्नेह दिया आभार ...शेखावत जी,मनोज जी और इमरान भाई...

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  5. बहुत ही सही कहा है...
    कहा ये भी जाता है
    किताबे अच्छी दोस्ती निभाती हैं
    ये न रूठती,और न ही सताती हैं ...
    किसी पन्ने पर नाराज़गी,
    तो किसी पर मनाती हैं
    कही भूले से जो भटक जाये
    पलट कर राह भी दिखाती हैं..खैर
    it's good

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  6. बात को बेहदख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया है...अंजु आपने...शुक्रिया..

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  7. किताबों पर संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।

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  8. डॉ सिंह ...बहुत-बहुत धन्यवाद..स्वागत है आपका...

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  9. Bahut hi Shandar Sir Ji....

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  10. स्वागत है लखन भाई

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