यह किताबें अगर ना होती तो शायद हमारे जैसों की हालत और हालात बहुत खराब होते..
वाकई ...किताबों की खूबसूरती क्या खूब बयान की है आपने.
राजेश जी,बहुत खूब...कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गएँ......किताबों से बढकर कोई सच्चा साथी नहीं होता|
मन की बात थी...सो कह दी....आपने स्नेह दिया आभार ...शेखावत जी,मनोज जी और इमरान भाई...
बहुत ही सही कहा है...कहा ये भी जाता हैकिताबे अच्छी दोस्ती निभाती हैं ये न रूठती,और न ही सताती हैं ...किसी पन्ने पर नाराज़गी,तो किसी पर मनाती हैंकही भूले से जो भटक जायेपलट कर राह भी दिखाती हैं..खैरit's good
बात को बेहदख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया है...अंजु आपने...शुक्रिया..
किताबों पर संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
डॉ सिंह ...बहुत-बहुत धन्यवाद..स्वागत है आपका...
Bahut hi Shandar Sir Ji....
स्वागत है लखन भाई
यह किताबें अगर ना होती तो शायद हमारे जैसों की हालत और हालात बहुत खराब होते..
ReplyDeleteवाकई ...
ReplyDeleteकिताबों की खूबसूरती क्या खूब बयान की है आपने.
राजेश जी,
ReplyDeleteबहुत खूब...कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गएँ......किताबों से बढकर कोई सच्चा साथी नहीं होता|
मन की बात थी...सो कह दी....आपने स्नेह दिया आभार ...शेखावत जी,मनोज जी और इमरान भाई...
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है...
ReplyDeleteकहा ये भी जाता है
किताबे अच्छी दोस्ती निभाती हैं
ये न रूठती,और न ही सताती हैं ...
किसी पन्ने पर नाराज़गी,
तो किसी पर मनाती हैं
कही भूले से जो भटक जाये
पलट कर राह भी दिखाती हैं..खैर
it's good
बात को बेहदख़ूबसूरती से आगे बढ़ाया है...अंजु आपने...शुक्रिया..
ReplyDeleteकिताबों पर संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteडॉ सिंह ...बहुत-बहुत धन्यवाद..स्वागत है आपका...
ReplyDeleteBahut hi Shandar Sir Ji....
ReplyDeleteस्वागत है लखन भाई
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