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ये मैं हूं / राजेश चड्ढ़ा
मेरे दोस्त-
ये मैं हूं ।
मेरे-
पैरों के नीचे
जैसे-ज़मीन नहीं
बर्फ़ रहती है ।
मुझ में भी
नदी बहती है ।
बर्फ़ की एक परत
उस पर भी
जमी रहती है ।
लेकिन-
इन सब के
बावजूद ,
मेरे और बर्फ़
के भीतर-
नमी रहती है ।
मेरे दोस्त-
ये मैं हूं ।
गहन चितन से परिपूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletestraight to the heart.. mobile se comment kar raha hun isliye hindi mein nahi ho raha.. pl bear
ReplyDeleteइन सब के बावजूद /मेरे और बर्फ़ /के भीतर- / नमी रहती है .......
ReplyDeleteयही नमी बर्फ़ को बर्फ़ और पेड़ को हरा रखती है....
अच्छी कविता है
शुक्रिया......कैलाश जी....संगीता जी....मनोज भाई.....अंजु...आप सभी का धन्यवाद यहां विज़िट की इस हेतु..!
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