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Tuesday, October 19, 2010

यहां लिख जाओ / राजेश चड्ढ़ा



....यहां लिख जाओ....


तुम.....

इस वक़्त भी......

मौजूद हो.......

...सोच के...!

काग़ज़ पर...!

लफ़्ज़ों की शक्ल में.....!

ये तो हद है...!

कभी.......

बिना सोचे भी.....

कुछ कर जाओ....

या फिर...यूं कह लो....

बहुत जिया....!

अब किसी पर...

मर जाओ....!

सूरज भर

छिपते फिरे हो...

अब चांद भर

दिख जाओ...

कुछ भी

ना कह पाओ....

तो...आओ.....

यहां लिख जाओ........

13 comments:

  1. सूरज भर

    छिपते फिरे हो...

    अब चांद भर

    दिख जाओ...

    bhai waah...gazab ke bhaav aur shabd h..
    badhai..

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  2. सूरज भर
    छिपते फिरे हो...
    अब चांद भर
    दिख जाओ...

    मैं तो यहाँ दिख भी गया और यहाँ लिख भी रहा हूँ, सच, ब्लॉग पर यहाँ लिखने का आमंत्रण अच्छा लगा.

    आपकी रचनाएँ ब्लॉग पर ज़्यादा भाती हैं. यहाँ नियमित रूप से लिखिए हुज़ूर.

    मनोज

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  3. इतना आसान भी नहीं भुला पाना.चाहे वो सूरज बन जाए या चंदा हर रूप में आएगा आप की सोचों में.

    सुंदर कविता.

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  4. शेखावत जी...... ana जी......... Manoj जी........ अनामिका जी.....धन्यवाद आप सभी का

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  5. राजेश जी,

    हमेशा ही लिखा है......आज भी लिख देते हैं.......बढ़िया रचना|

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  6. बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  7. aapne likha hai bahut khoob.hum to padhte padhte gaye kavita mein doob.

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  8. कविता की अनुभूति बड़ी विनम्र है. इसे फेसबुक पर भी देखा था लेकिन हर बार नए अर्थ, नए तरीके से खुलते हैं.

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  9. इमरान अंसारी जी .....वन्दना जी.....harishharry jI ....Kishore bhaaI....meharabaanI

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  10. खुबसूरत , उम्दा.................... रचना

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  11. सोच के कागज़ पर .....
    लफ़्ज़ों की शक्ल में ....
    जब कोई रहता है...
    तो बहुत ही उम्दा सी कोई कविता कहता है .......
    है न ........! जैसे ये कविता...
    ग़ज़ल तो खूबसूरत थी ही .....
    अब तो काव्य रंग भी निखार पर है.....
    बहुत बहुत बधाई ...!शायर का कवि होना.......बेहतरीन भाव........!

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  12. ....लफ़्ज़ों की क़द्र करने के लिए धन्यवाद......

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