बेवक़्त चेहरा झुर्रियों से भरने लगी है ग़रीबी तूं
है पौध नाम फ़सल में, धरने लगी है ग़रीबी तूं ।पेट के आईनें में शक़्ल कुचलती है कई दफ़ा
परछाई पर भी ज़ुल्म , करने लगी है गरीबी तूं ।
चांद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
अब रूख़ी-सूख़ी चांदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
प्यास लगे तो आंसू हैं, ये दरिया तेरा ज़रिया है
अपने पेट की आग़ में, जलने लगी है गरीबी तूं ।
ख़ामोश है और ख़ौफ़ से सहमी हुई सी लगती है
शायद तन्हा लम्हा-लम्हा, मरने लगी है ग़रीबी तूं

vah GURU !!!!!!!!!!!!!AAPKE LEKHAN ME AMIRI JHALAKTI . ..BADHAI.......
ReplyDeleteचांद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
ReplyDeleteअब रूख़ी-सूख़ी चांदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
बहुत सुन्दर ...गज़ल ...एक गरीब के दर्द को बयाँ करती हुई
वाह खूबसूरत ग़ज़ल कही है. पोएट्री के सामाजिक सरोकार उसे अधिक सुंदर बनाते हैं. पुनः शुभकामनाएं.
ReplyDeleteराजेश जी,
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन ........दाद कबूल फरमाएं |
kya baat hai.chand ko roti samjhane ka khyal laajawab.
ReplyDeleteMastan singh bhai
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप ( गीत )जी
Kishore Choudhary bhai
harish harry ji........
आप सभी का शुक्रिया..आपने समय दिया.
इमरान जी धन्यवाद
ReplyDeleteपरछाई पर भी ज़ुल्म , करने लगी है गरीबी तूं ।
ReplyDeleteचांद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
अब रूख़ी-सूख़ी चांदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/19-297.html
ReplyDeleteयहाँ भी आयें .
बहुत सटीक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवाह जी, बहुत उम्दा रचना..आनन्द आ गया.
ReplyDeleteगरीब की व्यथा रोटी को चाँद समझ ही लेती है ...
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता ..!
जिस तरह अमावस कि रात चाँद को निगल जाती है उसी तरह गरीबी जिंदगी को . अच्छी कही . और एक सोच ही नहीं दर्द भी उभर गया .
ReplyDeleteआप सभी का आभार
ReplyDeleteभूख और गरीबी के दर्द को बयान करती एक बहतरीन गज़ल .....मेरा अभिवादन स्वीकार करे
ReplyDeleteस्वागत है अन्नू जी
ReplyDeletegreat!!!!! really ur words make an image before eyes. your way of representations and to understand the world and then put into words is awesome. its fine to be such personality very near to heart.
ReplyDeleteJK Soni, LBSNAA, Mussoorie
www.jksoniprayas.blogspot.com
जितेन्द्र.....व्यस्त समय में से भी समय निकाल कर पढ़ने का शुक्रिया
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