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Sunday, June 06, 2010

किस से रूठें किस से बोलें.


किस से रूठें किस से बोलें.
किस की मानें किस को तोलें

जिस का पलडा देखें भारी,
ऐन वक्त पर उस के हो लें

गंगा जब दर से ही निकले,
क्यों ना हाथ उसी में धो लें

तुम भी सच जब ताक पे रखो,
हम भी झूठ कहां तक बोलें

अपनी भूख पे अपनी रोटी,
नहीं मिली सामूहिक रो लें

9 comments:

  1. सुंदर कविता। बधाई।।

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  2. AnonymousJune 06, 2010

    sachche dil se mastan bole ,.....shaandar kavita

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  3. भाई राजेश जी चड्ढ़ा,
    सत्-श्री-अकाल!
    आपके ब्लाग पर भ्रमण कर आनंद आया।आपकी ग़ज़लेँ पढ़ कर यह आनंद सौ गुणा हो गया!
    हम तो वैसे भी आपकी ग़ज़लोँ के दीवाने हैँ।अब हम क्या कहें! यही कहेँगे-
    हम से दिल मिला हाथ नहीँ।
    दिल ही चाहिए साथ नहीँ॥

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  4. AnonymousJune 07, 2010

    सटीक

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  5. जिस का पलडा देखें भारी,
    ऐन वक्त पर उस के हो लें
    सच कहा...आजकल भलाई इसी में है...
    नीरज

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  6. तुम भी सच जब ताक पे रखो,
    हम भी झूठ कहां तक बोलें

    बेहतरीन-सुंदर कविता।

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  7. AnonymousJune 10, 2010

    बहुत खूब लिखते हैं आप हम तो आपके फैन हो गए हैं |

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  8. जिसका पलडा देखें भारी,
    ऐन वक्त पर उस के हो लें...
    वाह.......राजेश जी .....शे'र बहुत ही......बढ़िया...बेहतरीन ग़ज़ल.....बधाई......

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  9. आपको पढ़ कर अच्छा लगा ......बधाई !

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