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Tuesday, May 18, 2010

मेरे सामर्थ्य को चुनौती मत दो

मेरे सामर्थ्य को चुनौती मत दो,
दर्द में बेशक कटौती मत दो।

बंधक है मेरे पास खुदगर्जी आपकी,
मुझे सहानुभूति की फिरौती मत दो।

रोशनी उधार की घर चाट जाएगी,
अपने नाम की रंगीन ज्योति मत दो।

छीन कर खाने की तुम्हें आदत है,
मेरे मासूम से बच्चे को रोटी मत दो।

2 comments:

  1. बिलकुल नए काफिये वाली ये ग़ज़ल बहुत असरदार है..वाह...
    नीरज

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  2. ACHHA KATAKSH;
    ZANANE K HALAT PAR

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